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Tuesday, November 25, 2025

ربیع الاول کا خاص وظیفه


 आज 5 रबीउल अव्वल से लेकर 12 रबीउल अव्वल तक अल्लाह की यह लाडली सूरत है। सिर्फ 11 बार पढ़ लो। यह रबीउल अव्वल का सबसे लाडला वजीफा है। जो शख्स भी पढ़ता है अल्लाह का लाडला बंदा बन जाता है। इसलिए ये इतनी मुबारक सूरत है। इतनी ताकतवर सूरत है। जिसने भी इन दिनों में पढ़ी है ना वो हमेशा कामयाब हुआ है। उसने अपनी हर बात अल्लाह से मनवा ली है। उसकी हर हाजत पूरी हो जाती है। कहते हैं उसके पूरे साल के दिन फिर जाते हैं। रिज़्क इतना आता है कि वो बांटते बांटते थक जाएगा। मगर रिज़्क उसके घर से खत्म नहीं होगा। हर शख्स, हर परेशान हाल, हर मजबूर शख्स एक बार इस सूर मुबारका को पढ़ के देख ले। क्योंकि आप इसको पांच आज पांच रबी अव्वल भी पढ़ सकते हैं। छ रबी अव्वल को भी सात, 8, 9, 10, 11, 12 यहां ये चंद गिनती के दिन तुम्हारे पास मौजूद हैं। यानी एक हफ्ता तुम्हारे आज हफ्ते से लेकर अगला हफ्ता। ये आपके पास सात दिन है। आप इसमें देखते हैं किस कदर इसकी बरकतें हासिल करते हैं। सिर्फ एक दिन भी पढ़ लिया तो आपकी किस्मत बदल जाएगी। आपका मुकद्दर संवर जाएगा। ये तकदीरों को बदलने वाला अमल है। ये अल्लाह को राजी करने वाला अमल है। इसलिए ये अमल जिसने भी किया है वो कामयाब हुआ है। अब मैं आपको बता दूं इस अमल को करने का तरीका तरतीब क्या है? इस बात को जरा तवज्जो के साथ समझने की जरूरत है। जैसे-जैसे बंदा इसको पढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे उसकी जिंदगी के तमाम मामलात हल होते चले जाएंगे। बेऔलाद भी पढ़ सकते हैं। बेरोजगार भी पढ़ सकते हैं। गुरबत के मारे, कैद में रिहाई हासिल करने वाले मकरूज़ जो हैं वो भी पढ़ लें। हर किस्म की शादी की रकावटें, हर किस्म की बंदिश, हर किस्म के मामलात के लिए यह अमल तुम्हें बाकी आमाल और वजाइफ से बेनियाज़ कर देगा। इसलिए दोस्तों आपने इस अमल को जरा इसी तरतीब के साथ करना है जो तरतीब मैं आपको अर्ज करने लगा हूं। अब आपने सबसे पहले जब ये अमल शुरू करना है तो सिर्फ और सिर्फ पांच मर्तबा आपने आज पांच रबी अव्वल के दिन शुरू करेंगे तो पांच मर्तबा पढ़ेंगे। छह को पढ़ेंगे तो छह मर्तबा पढ़ेंगे। सात को पढ़ेंगे तो सात मर्तबा। आठ को पढ़ेंगे तो आठ मर्तबा। नौ को पढ़ें तो नौ मर्तबा। यानी जिस रबीउल अव्वल तारीख को यह अमल आप पढ़ेंगे तो आपने शुरू में कुरान करीम की इस आयत मुकद्दसा को इस तादाद में पढ़ना होगा। यानी जिस दिन आपने यह अमल शुरू किया है, वो जिस तारीख को आपने यह अमल शुरू किया है, उस तारीख के एतबार से आपने उतनी बार ये कलमात पढ़ने हैं। ये ये जो चीज मैं आपको बता रहा हूं, इसकी बरकत से इंसान जमीन की तमाम आफात बलियात से महफूज़ रहता है। तमाम और ये वो कलमात है वो आयत मुकद्दसा जो आपको बताने लगा हूं जिसके बारे में रब्बुल आलमीन ने हजरत मूसा अल सलातो सलाम को फरमाया था। फरमाया मूसा मैंने उम्मते मोहम्मददिया को एक ऐसी आयत मुकद्दसा दी है के जो भी उसको पढ़ेगा और फिर मेरी बारगाह से मांगेगा मैं उसको अता कर दूंगा। उसी मजलिस में एक नबीना बैठा हुआ था। जब मूसा अल सलातो सलाम ने अपनी कौम को ये बात सुनाई ना उस नबीने ने अल्लाह की बारगाह में फ़ौरन अर्ज कर दी। या अल्लाह इन कलमात की बरकत से मुझे बेनाई अता फरमा। अल्लाह ताला ने फ़ौरन उसको बेनाई नज़र अता कर दी। अब वो उसका नबीनापन खत्म हो गया। ये ऐसी का ताकतवर आयत मुकद्दसा है। ये इतनी मुबारक है जिसको आपने इसी तरतीब के साथ उसी तादाद के बराबर पढ़ना होगा। फिर आप देखें कैसे तुम्हारे मामलात देखिए हजरत मिशरे हाफी रहमतुल्लाह अल एक रास्ते पर से गुजर रहे थे। रास्ते में एक कागज गिरा हुआ था जिस पर ये आया मुकद्दसा लिखी हुई थी। उसको देखकर आप बड़े परेशान हुए। आखिर उसका कागज को उठाया। खुशबू खरीद कर उसको लगाया और महफूज़ बुलंद जगह पर रख दिया। कहा कि ये अल्लाह का नाम है। वो शान वाला है। वो अजमत वाला है। तेरा मुकाम यहां गली नाली नहीं है। तेरा मुकाम तो बुलंद है। बस इतने अल्फाज़ कहने थे। खुशबू लगाकर जब बुलंद जगह रखा। इतने में हाथफ गैब ने आवाज दी। ए बिशरे हाफ़ी तूने हमारे नाम को खुशबूदार किया है। हम तेरे नाम को दुनिया और आखिरत में खुशबूदार कर देंगे। इसलिए दोस्तों ये वो चीजें हैं जो इंसान को जमीन से आसमान की तरफ ले जाती हैं। बुलंदियों पर ले जाती हैं और वहां तक ले जाती हैं जहां किसी और की नजर भी नहीं पहुंचती। इसलिए दोस्तों आप इस तरतीब के साथ इसको पढ़ेंगे। ये क्या है? ये आया मुकद्दसा क्या है? ये कुरान करीम की ये वो आया मुकद्दसा है जिसके अंदर अल्लाह ताला ने तमाम आलूम समा दिए हैं। तमाम आलूम को परो दिया इसके अंदर। और ये वही है ना जिसकी बरकतें बेशुमार हैं। ये क्या है? ये बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम है। तो इसको आपने रबीउल अव्वल के दिन के यानी के तारीख के एतबार से पढ़ना है। अब ये मैं तरतीब जो आपको अर्ज कर रहा हूं ये बड़ी शान है। बड़ी आलीशान ये वजीफा है। ये सदियों से लोग करते इसकी बरकतें हासिल करते आ रहे। इसको पढ़ते आ रहे हैं। अल्लामा नसवी रहमतुल्लाह ने इसके बारे में बड़ी तफसील के साथ लिखा है। मैं उसको दो लफ्जों में समेटना चाहता हूं। हजरत आदम सलातो सलाम के बेटे थे काबिल। उन्होंने ख्वाहिश नफसानी के तहत अपने भाई हाबील को शहीद कर दिया था। यह मशहूर वाक्या हजरत आदम अली सलातो सलाम ने नाराजगी का इज़हार फरमाया। अल्लाह ताला ने आदम सलातो सलाम पर वही नाज़िल फरमाई। ऐ आदम ज़ तुम्हारे कब्जे में दे दी गई। ये सुनकर आदम अली सलातो सलाम ने ज़मीन को हुक्म दे दिया। ऐ ज़मीन काबील को हड़प कर ले। हसबे इरशाद काबील को निगलने का इरादा कर लिया ज़न ने। तो काबील ने कहा ए ज़मीन तुझे इस कलमे का वास्ता। मुझे हलाक ना कर। जब कबील ने इसका वास्ता दिया ना तो ज़मीन ने फ़ौरन छोड़ दिया। अल्लाह ताला ने हुक्म दिया कि ज़मीन छोड़ दे इसको। इसकी बरकत से अगर काबील जो कातिल है अपने भाई का अगर वो अज़ाब से बच सकता है तो हम तो जनाब उम्मते मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तो अल्लाह ताला हमें भी जमीन की तमाम आफात बलियात से महफूज़ फरमा लेगा। इसलिए जो लोग किसी मुश्किल में हैं, किसी गम में हैं, किसी परेशानी में हैं, किसी दुख में हैं, किसी मुसीबत में है, कोई भी आफत आ पहुंची है, बस इसको पढ़ें। अल्लाह पाक अपनी रहमत का सदका इसके अंदर क्योंकि अल्लाह ताला की वो सारी सफात मौजूद हैं। वो सिफतें मौजूद हैं। रहमान रहीम और ये सिफतें इस कदर बाबरकत हैं कि हमारी जिंदगी का पहिया इसके बगैर नहीं चलता। हम जो सांस ले रहे हैं, हम जो जिंदगी जी रहे हैं, हमारे जितने मामलात हैं, अगर वो चल रहे हैं, तो वो इसके बरकत से चल रहे हैं। ये बात आपको पता होनी चाहिए। इस बात को आपको समझना चाहिए। इसलिए ये इतनी मुबारक चीजें हैं जिसका समझना आपके लिए इंतहाई जरूरी है। अब इसी तरतीब के साथ जब हम इसको पढ़ते हैं तो इसकी बरकतें हमें जरूर नसीब होती हैं। अब आपने जब अमल करना होता है तो ये सारी चीजें आपने अपने मद्देनजर रखनी है। अपने ज़हन में रखनी है। अब इसके बाद दुआओं की कबूलियत इंशाल्लाह आपका मुकद्दर होगी। अब इसी तरह वजाइफ करने से करने के बाद दुआ जरूर किया करें। और वजाइफ करने से पहले हस््ब तौफीक अल्लाह के रास्ते में कोई ना कोई चीज सदका जरूर किया करें। इसकी वजह यह होती है अगर हम वजाइफ के अंदर कोई कमी पेशी हमसे हो जाती है तो अल्लाह पाक उसकी बरकत से उसको दूर फरमा देता है और हमें कामयाबी अता कर देता है। तो इसलिए वजाइफ पढ़ने के दौरान बदन और कपड़ों की पाकी होना जरूरी है। और जिस जगह आप बैठकर यह अमल कर रहे हैं वो जगह भी पाक होनी चाहिए। बल्कि अगर खुशबू मिल जाए तो यह सबसे अच्छा है। अपने इखलाक और बातनी सफाई का भी ख्याल रखें। हर अमल अच्छे वक्त में करें। हर वक्त हर वजीफा किबला की जानिब रुख करके पढ़ें। ये जन्नती ज़ेवर की किताब है। उसके अंदर ये शरायत लिखी हुई है। चंद एक बातें जिस पे अमल करना होता है। अक्सर लोग आमाल के अंदर वजाइफ के अंदर नाकाम क्यों होते हैं? उनके नाकामी की वजह में से एक वजह यह भी है। और यह वजह जो मैं आपको बता रहा हूं उसमें एक वजह यह है इसको अक्सर लोग पसे पुश्त डाल देते हैं। फिर जब वो वजाइफ करते हैं फिर वो नाकाम होते हैं। फिर रोना रोते हैं। फिर हम कहते हैं कि हमें हमारा वजीफा काम नहीं करता। भ आपका वजीफा काम तब करेगा जब आप उस वजाइफ को समझेंगे मुकम्मल। कुछ लोग आते हैं बस चंद मिनटों के लिए वजीफा सुनते हैं, भाग जाते हैं। बस अपनी मर्जी से करने के लिए बैठ जाते हैं। भई, ऐसे नहीं काम चलता, जो वजीफा अल्लाह वालों ने बताया होता है, उसकी एक तासीर होती है, एक ताकत होती है। हर हरफ की ताकत होती है। इसलिए, अब इसके बाद आपने 10 बार ये कलमात पढ़ने हैं। पहली चीज मैंने जो आपको बताई, उसको आपने पढ़ना है। अब ये जो चीज मैं आपको ये जो कलमात बता रहा हूं ना ये हदीस मुबारका में आए हैं और इनकी ताकत और तासीर ये है कि इसका विर्द इंसान को गमों से आजाद कर देता है। ये बुखारी शरीफ की हदीसे मुबारका है। हदीसे पाक में ये ऐसा विर्द है कि जिसके जिसके जरिए अल्लाह ताला जन्नत के खजानों में से बंदे को खजाना अता करता है। ये भी एक खजाना है जन्नत का। और इसलिए जन्नत के खजानों में से ये खजाना मेरे आका दो जहां का फरमान है। जो इसे प्यार करेगा, मोहब्बत से पढ़ेगा। अल्लाह पाक उसको इसकी बरकत से जन्नत अता फरमाएगा। उसकी दुनिया ही जन्नत बन जाती है। मेरे आका ने फरमाया जो इसको 10 बार पढ़ेगा। ये 10 बार आपने पढ़ना है। वो गुनाहों से ऐसे पाक और साफ होगा जैसे आज ही मां के पेट से पैदा हुआ है। दुनिया की 70 बलाओं से अल्लाह पाक उसको महफूज़ फरमाता है। ये तिरमिजी शरीफ में लिखा हुआ है। हजरत अबू हुरैरा रदी अल्लाह ताला अनू रिवायत करते हैं। मेरे आका ने इरशाद फरमाया जो इसको पढ़ेगा ज्यादा से ज्यादा पढ़ो। इसलिए जन्नत का यह खजाना है और जो इसको पढ़ेगा वो कभी किसी का मोहताज नहीं होगा। उस पर अल्लाह ताला मोहताजी के दरवाज़े बंद कर देता है। और जो इसको पढ़ेगा 99 मर्जों की दुआ है ये और जो इसको पढ़ने की आदत बना लेगा हर मज़ से अल्लाह पाक उसको शिफा अता फरमाएगा। जिस भी मज़ के अंदर हैं, जिस भी मुश्किल के अंदर है, जिस भी गम के अंदर है, जिस भी तकलीफ में है, बस इसके पढ़ने की देर है। लेकिन शर्त क्या है? अहम बात क्या है? वो जो मैंने आपको पहले अर्ज कर दी हैं। अगर आपने वो बातें नहीं सुनी तो फिर आपकी बदनसीबी है, बदकिस्मती है। इसलिए मैं आपको यह मुकम्मल एक तफसील के साथ बहुत बड़ा अमल दे रहा हूं। अगर आप इसको इस तरह पढ़ लेंगे तो कामयाबी ही कामयाबी है। नहीं पढ़ेंगे तो नाकामी है आपके लिए। अब ये जो सूरतें मैं आपको बता रहा हूं, इसके पढ़ने के बाद अब आपने इन कुरान करीम की इन सूरतों को पढ़ना है इस तरतीब के साथ। लेकिन पहली बार आपने एक बार यह अमल करना है। पूरे दिनों में से जिस दिन आप चाहें आपकी मर्जी है। लेकिन उसमें जो तरतीब मैंने आपको बताई है, जो तारीख होगी, उस तारीख के ऐतबार से आपने पहली आया मुकदसा को पढ़ना है। फिर आपने जो दूसरे नंबर पर पढ़ना है वो ला हौला वला कुत इल्ला बिल्ला हिल अली अज़म है। इसको पढ़ना है। इसकी तादाद मैंने जो आपको अर्ज की है। इसको पढ़ने के बाद हाथों के ऊपर दम करें। पूरे वजूद में फेरे। उसके बाद आप दुरूद पाक पढ़ें। तो यह अमल की तरतीब होगी। यह तरीका-कार होगा। इसके मुताबिक पढ़ेंगे इंशाल्लाह बरकतें बेहिसब मिलेंगी। अब दरूद पाक भी हमने उसी हिसाब से पढ़ना है जैसे हमने बिस्मिल्लाहिर्रहमा रहीम को पढ़ा था। यानी दिन के हिसाब से या कम से कम पांच मर्तबा और ज्यादा बेहतर यही है कि हम इसको भी उस दिन के इतवार से ही पढ़ें जिस दिन हमने यह अमल करना है। जितनी रबीउल अव्वल की तारीख होगी उतनी तादाद में हमने दुरूद पाक पढ़ना होगा। तो ये दुरूद पाक पढ़ने की तरतीब होगी। तो जब दुरूद पाक पढ़ा जाएगा तो आपको पता है दद पाक पढ़ने की जो फजीलत है जो अजमत है और ये दुरूद पाक जो है ये आखिरत का जीना है और ये आखिरत का करीना भी है। ये दीदार मुस्तफा का जरिया भी है। ये दुनियावी तमाम फितनों से बंदे को बचाता है। अल्लाह पाक के गज़ब से बचाता है। ये पढ़ने वाला शख्स अल्लाह के फज़ल करम से अल्लाह की रहमत से जन्नत का मुस्तहिक होता है। ये दुनिया की मुश्किलात हों या आखिरत की प मुश्किलात हो अल्लाह पाक इसके पढ़ने वाले को निजात अता फरमाता है। ये इंसान को नूरानियत अता करता है। ये हर गम से नजात दिलाता है। ये आखिरत का खजाना भी है और इसको पढ़ने वाला खुशकिस्मत होता है। इसलिए अब आपने और जिस घर में ये पढ़ा जाता है ना बेहिसाब उस घर में बरकतें आती हैं। लेकिन जब अमल के साथ पढ़ा जाएगा तो हर गम से अल्लाह नजात अता फरमाएगा। हर काम में कामयाबी मिलेगी। इज्जत, अरूज, शहरत ये तमाम चीजें इसके पढ़ने वाले को नसीब हो जाती हैं। इसलिए आपने इस तरतीब के साथ इसको पढ़ना है। बेचैनी जो लगी होती है ना हर लम्हा लोगों को इस तरह के मसाइल का सामना करना पड़ रहा होता है। इसकी बरकत से अल्लाह ताला वो तमाम मसाइल हल फरमा देगा। इसलिए कि यह ईमान को ताजगी बखशता है। घरों में रहमत आती है। रूहानी तरक्की होती है। दुआओं की कबूलियत होती है। नेकियां नेकियों में इजाफा हो जाता है। और बुराइयां अल्लाह पाक इसकी बरकत से मिटा देता है। खत्म फरमा देता है। अब दुरूद पाक के हवाले से मैंने आपको अर्ज किया है। चाहे तो दुरूद इब्राहिम पढ़ें। ये नहीं आता तो आप जैसे मैंने कहा सलातो सलाम वालेक का या जो भी आपको आता है आप पढ़ लें। तो ये दिल को सुकून और राहत मिल मिलेगी। दर्जात बुलंद होंगे। मुश्किलात आसान होगी। बहुत सारी इसकी फज़लत और अजमत है। अल गरज़ इसके बाद आपने कुरान करीम की ये सूर मुबारका पढ़नी है। इसको सिर्फ आपने 11 बार पढ़ना होगा। सिर्फ 11 मर्तबा ये सूर मुबारका पढ़नी है। इसके बाद सिर्फ एक सूरत नहीं है। चंद सूरतें इकट्ठी मिलाकर आपने पढ़नी है। इस तरतीब के साथ। फिर हर एक सूरत की बरकत, हर एक सूरत की फ़ज़ीलत वरा उल वरा है। इसलिए यह अज़मत के ऐतबार से, यह फ़ज़ीलत के ऐतबार से बड़ी अहम तरीन सूरत है। जब कोई बंदा इसको पढ़ता है अल्लाह के फज़ल करम से उसके तमाम मसाइल हल होते हैं। इसलिए आपने इस तरतीब के साथ इस सूर मुबारका को पढ़ना है। जब इस सूर मुबारका को पढ़ेंगे तो बिस्मिल्लाह अब सिर्फ आपने शुरू में एक बार पढ़नी है। अब बार-बार बिस्मिल्लाह पढ़ने की आपको जरूरत और हाजत नहीं होगी। इसी तरह हमने दद पाक पढ़ा और उसके बाद हमने इस सूर मुबारका को जैसे मैंने आपके सामने अर्ज किया इसी तरह आपने इस सूर मुबारका को पढ़ा। ये सूरत आपने यानी कि ये सूरत कुरान करीम की वो सूरत है जो मक्का में भी नाज़िल हुई है और मदीना में भी नाज़िल हुई है। और ये सूरत पढ़ने से अल्लाह तबारक व ताला बंदे को पूरा कुरान पढ़ने का सवाब अता फरमाता है। पूरा एक बार पढ़ेंगे ना इस सूरत को तो आपको अल्लाह तबारक व ताला पूरा कुरान पढ़ने जितना सवाब अता करेगा। फिर ये सूरत उुल कुरान है। यानी ये कुरान की मां है। ये कुरान की मां इसको कहा जाता है। उल किताब भी कहा जाता है। यानी किताबों की मां भी इसको कहा जाता है। और ये वो सूरत है। इसकी तासीर और ताकत का हमें इस बात से अंदाजा होता है कि ये सूरत के पढ़े बगैर नमाज नहीं होती। और अल्लाह ताला से इसमें मदद मांगने का सबक है। यह सीधा रास्ता मांगने की इसमें दुआ है। ये उलमा फरमाते हैं पूरे कुरान मजीद के मज़ामीन इस सूरत में मौजूद हैं। ये अल्लाह ताला ने इससे पहले किसी नबी को नहीं अता की। ये हुज़ूर अली सलातो सलाम को अता की। हुज़ूर की उम्मत को अता की। हुज़ूर फरमाते जब ये सूरत नाज़िल हुई मैं अपनी उम्मत के गमों की वजह से बेफिक्र हो गया। यानी अब मेरी उम्मत को कोई गम बाकी नहीं होगा। क्योंकि इसकी सात आयात हैं और इसकी हर एक आयत दोज़ख से बचाने के लिए काफी होगी। दोज़क से सात दरवाजे हैं। इसकी हर एक आयत हर दोज़क के एक दरवाजे पर उसके लिए रुकावट पैदा कर देगी। यानी वो बंदा जन्नती बन जाएगा। जो इसको सिद्ध के दिल के साथ पढ़ेगा। फिर इसके माज़ामीन पर अमल करेगा। अब ये सूरतुल फातिहा शरीफ है जिसको आपने सिर्फ एक बार बिस्मिल्लाहिर रहमान रहीम पढ़ना है। बाकी आपने इसी तरतीब के साथ इस सूर मुबारका को पढ़ते जाना है और उसके बाद आपने सूरतुल दूसरी सूरत जो मैं आपको बताने लगा हूं इसको मुकम्मल पढ़ना है। जितनी तादाद अर्ज की है इसके बराबर। इसके बाद दूसरी सूरत को पढ़ना है। उसके भी शुरू में बिस्मिल्लाह रहमान रहीम सिर्फ एक बार पढ़ना है। और फिर उस सूर मुबारका को आपने इसी तरतीब के साथ पढ़ते जाना है। ये अल्लाह की रहमत है। ये अल्लाह का करम होगा। यह अल्लाह का फज़ल आपके ऊपर बरसेगा। और ये वो सूरत है जिसकी अजमत और फजीलत इतनी है कि ये बंदा मोमिन की जिंदगी में सुकून बखशती है। जो कहते हैं हमारी जिंदगी से सुकून खत्म हो चुका है। हमारी जिंदगी से राहत खत्म हो चुकी है। ये दिलों को इत्मीनान बखशती है। ये निफाक से बंदे को पाक कर देती है। गैब से मदद दिलाती है। गैबी मदद इसके जरिए अल्लाह ताला है। दुश्मनों के लिए तीर बाद है। कोई दुश्मन आपका बाल बीगा नहीं कर सकेगा। ये इल्म भी कौसर है। कुरान भी कौसर है। शरीयत भी कौसर है। उम्मत की कसरत भी कौसर है। ये हुजूर की शान भी कौसर है। ये हुज़ूर अली सलातो सलाम की अजमत की दलील है। ये मोमिन को उम्मीद देती है। ये हमें नमाज़ की हमियत सिखाती है। ये हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये बहुत ज्यादा बरकतें दिलाती है। इसलिए मोमिन के दिल को खुश कर देती है। तो ये सूरत कौसर शरीफ है। यानी बिस्मिल्लाह्रमाहीम इन कौसर फस रब्ब इन शतर यह सूर मुबारका है। तो ये सूरत कौसर आपको कसरत दिलाएगी रिज़्क की इज्जत की शोहरत की। ये कब्र में भी रोशनी देती है। ये अल्लाह की रजा याद दिलाती है। सुस्ती को खत्म कर देती है। जो लोग कहते हैं हमारी वजूद में सुस्ती है। हमारा वजूद बेचैनी का शिकार है। हमारा वजूद जो है ये मुश्किलत बहुत सारी मुश्किलात चीजों का अंदर फंसा हुआ है। और हमारे घर बेस सुकूनी है। इस सूर मुबारका को आपने 11 बार पढ़ना है। अब इसके पढ़ने के बाद अब तीसरे नंबर पर एक सूर मुबारका जिसको आपने पढ़ना है। ये सूरत जब पढ़ेंगे ना ये सूरत वो सूरत है जो आका अल सलातो सलाम ने अपने गुलाम अपने एक सहाबी को बताई थी। अर्ज फरमाया था या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अल का वसल्लमा मुझे घर में जो है वो दौलत ने रुख फेर लिया है। मेरे घर में दौलत नहीं है। मेरे घर में रिज़्क नहीं आता और दुनिया ने मुझसे रुख फेर लिया। आका सलातो सलाम ने फरमाया तुम इस सूरत की तिलावत किया करो। अल्लाह तुम्हें भी अमीर कर देगा। तेरे हमसाइयों को भी अमीर कर देगा। अब यह वह सूरत है जिसकी बरकत इस कदर है कि अल्लाह ताला इसके पढ़ने वाले को भी अमीर कर देता है और अल्लाह ताला उसके हमसायों को भी इसकी बरकतें नसीब फरमा देता है। इसलिए अब इस सूर मुबारका की भी शुरू में आपने एक बार बिस्मिल्लाह पढ़नी है। उसके बाद इस सूर मुबारका को इसी तरतीब के साथ बिस्मिल्लाहिर्रहमा रहीम कुल अल्लाहु अहद अल्लाहु समद लम यलिद वम यलद वम कुलद ये तीन सूरतों को इससे पहले वला हला वला कुत इल्ला बिल्ला अज़म इसको पढ़ना है अब इस सूर मुबारका को आपने 11 बार पढ़ना है। उसके बाद दद पाक पढ़ना है और उसके बाद अल्लाह के हज़ूर दुआ करनी है। इंशा्लाह तुम मालामाल हो जाओगे। अस्सलाम रहमतुल्लाह बरकातहू।

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